कृपा शंकर चौधरी ब्यूरो गोरखपुर
गोरखपुर। देश विकास कर रहा है। लोगों की आमदनी बढ़ रही है। सरकार सबका साथ सबका विकास की दिशा में कार्य कर रही है। उपरोक्त बातें सही हैं। किंतु गोरखपुर के सरकारी गौशाला में कार्य करने वाले अनुचरों की यदि बात करें तब यह बातें चिढ़ाने जैसी लगती हैं। कहने का आशय यह है कि सरकार द्वारा गौशाला निर्माण एवं गौवंश के रक्षा हेतु लाई गई योजना के बाद गौशाला में कार्य करने वाले अनुचरों के मानदेय पर ध्यान नहीं दिया गया। इसका नतीजा यह है कि अनुचर 22 रुपए में जीवन यापन करने को मजबूर हैं और इसके अलावा समय से मानदेय भी नहीं मिलता है। विभागीय अधिकारियों की माने तो अभी तक यह तय नहीं है कि किस मद से अनुचर का मानदेय दिया जाएं। अधिकारी मानते हैं कि ग्रामसभा विकास हेतु दिए जा रहे धनराशि से मानदेय दिया जाना है दूसरी तरफ ग्रामप्रधानों की माने तो इसके लिए अलग से व्यवस्था होनी चाहिए। इसी वजह से महीनों- महीनों तक अनुचरों का मानदेय रुकता आया है और अब भी जारी है।
अनुचर बताते हैं कि 2000 रूपए में 24 घंटे कार्य करना पड़ता है और समय से भुगतान भी नहीं किया जाता है। इस हिसाब से जोड़ा जाए तो तो एक दिन का इन्हें 22 रुपए प्राप्त होता है। यह धनराशि मनरेगा में कार्य करने वाले मजदूर से भी कम है जिससे इनके परिवार का भरण पोषण होने में दिक्कत का सामना करना पड़ता है । इसके अलावा इन अनुचरों हेतु यह नियम नहीं है कि कितने गोवंश पर कितने अनुचर रखें जाएंगे। इससे तमाम गौशालाओं में क्षमता से अधिक गोवंश है और उनका सही से देखभाल नहीं हो रही है।
अनुचरों को कम मानदेय मिलने से जहां एक ओर गोवंशों का सही तरह से देखभाल नहीं हो पाता है दूसरी ओर ज्यादा काम करने से अनुचर भी बीमार रहते हैं।
सरकार की मंशा थी कि गौशाला बनने के बाद किसानों और गोवंशों को सुविधाएं मिलेंगी किंतु इसके उलट गौशाला गोवंशों की कब्रगाह बनती जा रही हैं। सरकार द्वारा अनुचरों को कम मानदेय देने और प्रति गोवंश पर व्यय होने वाले पैसे की कमी रहने से गोवंश खाए बिना मर रहे हैं। लोगों की माने तो तनिक भी निर्मल हृदय वाला यदि व्यक्ति है तो वह अपने गोवंश को गौशाला में भेजना नहीं चाहेगा। तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो गौशालाओं के गोवंश से बाहर घूमने वाले छुट्टा पशु बेहतर दिखते हैं। रखरखाव की जिम्मेदारी मिले ग्राम प्रधान कहते हैं कि 6 रुपए चोकर और 24 रूपए के भूसे में छोटे गोवंश की तो चल जाएगी किन्तु बड़े के लिए यह ऊंट के मुंह में जीरा समान है। वे बताते हैं कि 8-14 रुपए किलो के भूसे में इन्हें कैसे खिलाया जाएं
यह सब देखते हुए हम कह सकते हैं कि सरकार को इस दिशा में पुनर्विचार करते हुए सुधार की दिशा में कार्य करनी चाहिए ताकि अनुचरों के परिवार भी ठीक से रह सकें और गौशालाओं में हो रहे गोवंश के मृत्यु पर विराम लगाया जा सके।
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