देवरिया ब्यूरो
देवरिया। 1965 मे विज्ञान स्नातक की पढाई पूरी कर रहे एक छात्र ने जब आनन्दमार्ग के आचार्य का वक्तव्य अपने कालेज मे सुना तो आनन्दमार्ग के सामाजिक, आर्थिक एवं अध्यात्मिक दर्शन से प्रभावित होकर आनन्दमार्ग आदर्श के प्रसार-प्रचार मे अपना जीवन उत्सर्ग कर दिया।आनन्दमार्ग के इन जीवनदानी संयासी कार्यकर्ता को आज हम आचार्य परेशानन्द अवधूत के नाम से जानते है।
आनन्दमार्ग के इन जीवनदानी सन्यासी कार्यकर्ता द्वारा भारत के उत्तर प्रदेश, हिमाचल, राजस्थान, पांडिचेरी आदि क्षेत्रों में प्रगतिशील उपयोगी तत्व और धर्म प्रचार के क्षेत्र में कार्य किया गया। जीवन के अन्तिम पड़ाव में उन्होंने लगभग 79 वर्ष की आयु में आनन्द मार्ग आश्रम देवरिया में दिनांक 09/06/2023 शाम 6 बजकर 45 मिनट पर अपने मनुष्य रूपी शरीर का त्याग कर दिया। शरीर छोड़ने की खबर के बाद अलग अलग जिले से आने वाले लोगों का तांता लग गया। आनन्द मार्ग पद्धति द्वारा विधि-विधान से उनके शरीर को दाह संस्कार कर पंचतत्व में विलीन कर दिया गया।
इन्हें जानने वाले देवरिया के आनन्द मार्गी नरसिंह बताते हैं कि आनन्द मार्ग प्रचारक संघ द्वारा प्रकाशित पत्रिका आनन्द युग और आनन्द रेखा का कई वर्षों तक इनके द्वारा बहुत अच्छी ढंग से संपादन किया गया। इसके अलावा भाषा विज्ञान पर इनकी विशेष पकड़ थी।
आचार्य पूर्णेशानंद अवधूत ने बताया कि श्रद्धेय आचार्य परेशानन्द अवधूत ने मुझे 1978 मे दीक्षा दी थी। कालान्तर में मै जब सन्यासी बन कर आचार्य प्रशिक्षण हेतु तिलजला मुख्यालय मे रूका था तो वह आर.डी.एस.हेतु आए हुए थे। आचार्य केशवानन्द दादा से उन्हे सूचना मिली थी कि उनका एक दीक्षाभाई संयासी बनकर आचार्य प्रशिक्षण मे है, तो वे मुझे खोजकर कर अपने ठहरने के स्थान जागृति हाल मे ले गए तथा एक पुरानी डायरी निकाल कर मुझे दिखाए कि देखो मैने तुम्हे फला साल मे फला तारीख को दीक्षा दी थी। इसके बाद से लगातार जब भी भेट होती आनन्दमार्ग दर्शन के गूढार्थ से मुझे परिचित कराते रहे। आनन्दमार्ग दर्शन के अन्तर्निहित गूढार्थ का जितना गहरा और व्यवहारिक ज्ञान आचार्य जी को था वैसा मैने अन्य किसी संयासी मे नही देखा।
आचार्य जी थोथी मान्यताओं, तर्कहीन परम्पराओं और पाखण्डपूर्ण क्रियाकलापों के घोर विरोधी थे।अपने बौद्धिक समझ से वे भविष्य मे होने वाली घटनाओं की सटीक भविष्यवाणी कर देते थे। उन्होने आज से 25 साल पहले ही कह दिया था कि प्रउत का कार्य केवल न्यूनतम आवश्यकताओं की सर्व सुलभता नही हैअपितु लोगों की बौद्धिक उन्नति कराना प्रउत का अधिक महत्वपूर्ण कार्य है।आज हम पाते है कि सरकारे न्यूनतम आवश्यकताए उपलब्ध करा रही है किन्तु बौद्धिक उन्नति से वंचित कर रही है।आचार्य जी हमेशा समाज से अधिक व्यक्ति को महत्व देते थे।व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास मे आचार्य जी जिस लगन और समर्पण से अथकरुप से लग जाते थे वह अकल्पनीय है।किसी कुशल शिल्पकार के तरह किसी भी अनगढ पत्थर को वह सही स्वरूप प्रदान करने के लिए अपने छेनी का सटीक प्रहार करने लगते थे।जो उनकी छेनिओ की मार सह गया वह सही और सार्थक आदमी बन गया ।आचार्य जी जहा भी रहे वही अपने बनाए हुए आदमियों को तैयार कर गए।उनकी छेनी की मार खाए हर व्यक्ति के मन मे उनके प्रति जो आन्तरिक समर्पण है वह उसके व्यक्तित्व के निखार का सुपरिणाम है।आचार्य जी एक सच्चे आचार्य थे।आज जो थोडी-बहुत आदर्श के प्रति समझ और समर्पण मुझमे है वह आचार्य जी की छेनियों की मार का ही सुपरिणाम है।आज आचार्य जी हमारे बीच सशरीर नही है किन्तु उनकी शिक्षा उनका आभास मुझे हमेशा कराती रहेगी।
आनन्द मार्ग के अनुसार दाह-संस्कार के बाद श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के तहत दिनांक 17,06,2023 को आनन्द मार्ग आश्रम दानोपुर देवरिया में एक श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए सभा आयोजित किया गया। जिसमें देवरिया गोरखपुर, आजमगढ़, बलिया,सिवान, कुशीनगर वाराणसी आदि जिलों के सैकड़ों लोगों ने भाग लिया।
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