कैलाश सिंह विकास वाराणसी
वाराणसी। उत्तर प्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल की अध्यक्षता में सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय का 41वां दीक्षांत समारोह सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए राज्यपाल महोदया ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि इन छोटे-छोटे बच्चों को संस्कृत विश्वविद्यालय में पढ़ते देख उन्हें बहुत प्रसन्नता हुई क्योंकि ये बचपन से ही अच्छे संस्कार सीख रहे तभी ये आगे जाकर भारत का भविष्य बनेंगे तथा भारत की उन्नति में अपना योगदान देंगे। उन्होंने संस्कृत में महिलाओं व छात्राओं के द्वारा पीएचडी उपाधि प्राप्त करने पर भी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि इससे हमारी ज्ञान परंपरा विश्व में फैलेगी। उन्होंने काशी को न्याय की भूमि बताया। उपाधियां अब डिजिलॉकर में आ गयी हैं जिससे कोई छेड़छाड़ संभव नहीं है।
उन्होंने मुख्य अतिथि के प्रति आभार जताते हुए कहा कि सेंट्रल संस्कृत यूनिवर्सिटी सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय की मदद के लिए तैयार है। उन्होंने कहा की महिलाएं जब शिक्षित होंगी तब सभी बुराईयां खत्म होगीं। उन्होंने इसके लिए रामायण के कैकयी द्वारा चारों भाईयों को दी गयी शास्त्र शिक्षा का उदाहरण दिया कि माँ का आदेश सर्वोपरि होता। माँ स्वतः रोटी न खाकर अपने बच्चों का पेट पालती है तथा शिक्षा दिलाती है। माता-पिता वृद्धाश्रम में पड़े हैं तो हम शिक्षित कहा से हुए। हम सभी को संकल्पित होना पड़ेगा की हम अपने माता-पिता को बुढ़ापे में वृद्धाश्रम में नहीं छोड़ेंगे।
राज्यपाल महोदया ने सभी को आईना दिखाते हुए जातिवाद से बाहर निकलने की बात कही। सबसे ज्यादे जातिवाद पढ़े लिखे लोगों में व्याप्त है। हमें जातिवाद से बाहर निकलना होगा तभी हम अपने देश को आगे ले जा पाएंगे। पिछले दो वर्षों में जहाँ भी नियुक्ति हुई है उसमें कोई गड़बड़ी नहीं हुई। जो होनहार होगा जगह अब उसी को मिलेगी। पिछले 250 साल में इस विश्वविद्यालय ने भारत को अनेक विद्वान दिये हैं लेकिन पिछले 15-20 सालों में विश्वविद्यालय की छवि धूमिल हुई है जिसपर हम सभी को सोचते हुए पुनः इस विश्वविद्यालय को आगे बढ़ाने को सामुहिक प्रयास करना होगा। उन्होंने कहा कि सभी के संयुक्त प्रयास से ही विश्वविद्यालय ऊँचाइयों को छू पायेगा तथा हम अपनी संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकम को आगे बढ़ा सकते।
हाल के दिनों में संस्कृत को लेकर जो प्रयास हुए हैं वो स्वागत योग्य हैं। हमें इसे आगे बढ़ाते हुए अपनी नयी पीढ़ी को अपनी प्राचीन भाषा सीखने को प्रेरित करना होगा। उन्होंने कहा कि डिजिटल शिक्षा आज की जरूरत है जिसमें विश्वविद्यालय द्वारा शुरू किया गया ऑनलाइन संस्कृत पाठ्यक्रम बहुत मदद करेगा। भारत को महाशक्ति बनाने में हमें सभी क्षेत्रों में अपने को आगे बढ़ाना होगा। हम विकास करते हुए अपनी विरासत को संरक्षित कर रहे। अगले 25 वर्ष भारत को आगे बढ़ाने में बहुत महत्वपूर्ण है जिसमें युवाओं को अपना योगदान देना होगा। उन्होंने महर्षि भारद्वाज के द्वारा प्राचीन समय में किए गए अविष्कारों को सामने रखते हुए भारत की प्राचीन जानकारी को सभी के समक्ष रखते हुए भारत की प्राचीनतम उपलब्धियां को बताया। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार ने नयी शिक्षा नीति में वेदों के विकास हेतु 100 करोड़ का प्रावधान किया है जिसका हम सभी को प्रोजेक्ट बनाकर फायदा लेना चाहिए। उन्होंने अन्त में प्रधानमंत्री के पांच प्रण को दोहराया जिसमें आत्मनिर्भर भारत, गुलामी की मानसिकता से निकलना, देश की विरासत को सुदृढ़ करना, भारत की एकता बनाए रखने तथा देश को आगे बढ़ाने में अपनी उपयोगिता देना। उन्होंने केजी से पीजी को जोड़ने तथा गावों के विकास की बात भी कही। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में वर्तमान में 32 विश्वविद्यालय है तथा आज छत्रपति साहुजी विश्वविद्यालय को ए डबल प्लस प्राप्त करने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए सम्पूर्णानन्द के प्राधिकारियों को भी इस संबंध में प्रयास करके ए डबल प्लस प्राप्त करने हेतु प्रेरित किया।
कार्यक्रम की शुरुआत में राज्यपाल महोदया द्वारा विश्वविद्यालय की ऑनलाइन संस्कृत प्रशिक्षण केंद्र तथा डिजिलॉकर व्यवस्था का बटन दबाकर उद्घाटन किया गया। अब विश्वविद्यालय की डिग्रियों को ऑनलाइन डिजिलॉकर के माध्यम से भी डाउनलोड किया जा सकता है। राज्यपाल द्वारा अभिनव प्रकाश, नितिन कुमार, संध्या पटेल, पवन कुमार पांडेय, अंकुर, विवेकानंद त्रिपाठी, नीतेश, अंकिता मिश्रा, अनुराग शुक्ला, सुदर्शन ठाकुर समेत कुल 33 विद्यार्थियों को 59 स्वर्ण पदक प्रदान किया गया। राज्यपाल द्वारा आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों को तथा संस्कृत विद्यालय के छात्र-छात्राओं को कुर्सी, टेबल, बैग आदि उपहार स्वरूप भेंट किया गया।
मुख्य अतिथि द्वारा समारोह में बोलते हुए कहा गया कि काशी वर्तमान में हमारे प्रधानमंत्री की कर्मभूमि भी है। वर्तमान में भारत अमृत काल में प्रवेश कर चुका है जो कि बिना अमृत भाषा अर्थात संस्कृत के संभव नहीं है। संस्कृत केवल जान पहचान की भाषा ही नहीं है बल्कि शास्त्र के पंचमुख के रूप में संस्कृत को रखना पड़ेगा। सृष्टि के शास्त्र के सभी कार्य संस्कृत से केवल इस काशी में ही संभव है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में उद्घाटित हुए ऑनलाइन संस्कृत पाठ्यक्रम विश्वविद्यालय के लिए नए आयाम गढ़ेगा। उन्होंने विश्वविद्यालय के अध्यापकों को कहा कि शिक्षा पूर्व प्रशिक्षण तथा प्रकाशन पूर्व शोध करें तभी हम विद्यार्थियों को एक अच्छी शिक्षा प्रदान कर सकते। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति राष्ट्र द्वारा स्वीकृत एक शिक्षा पत्र है इसको सभी घरों तक पहुंचना हम अध्यापकों का कर्तव्य है। अंत में उन्होंने संस्कृत के कल्याणार्थ सभी प्रयास करने को कहा।
विशिष्ट अतिथि द्वारा समारोह में बोलते हुए संस्कृत को सबसे प्राचीन व मधुर भाषा बताया गया। उन्होंने कहा कि संस्कृत संस्कृति से तथा संस्कृति संस्कार से जोड़ती है। उन्होंने कहा कि मैकाले की दी हुई शिक्षा पद्धति को संस्कृत भाषा ही चुनौती देते हुए उसको काट सकती है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री का लगातार प्रयास है की हम अपनी शिक्षा को संस्कार, तकनीक तथा रोजगार से जोड़े उसी दिशा में हमारी नयी शिक्षा नीति को भी तैयार किया गया है। उन्होंने कहा की महामहिम द्वारा लगातार शिक्षण संस्थाओं तथा आंगनबाड़ी में सुधारों हेतु प्रयास करते हुए कुछ ना कुछ उपहार स्वरूप दिया जा रहा है। महामहिम के प्रयासों से शिक्षा को लगातार बदलाव के रूप में प्रयोग किया जा रहा। उन्होंने सभी से असमर्थ लोगों को शिक्षित करने हेतु प्रेरित भी किया।
कुलपति प्रो बिहारी लाल शर्मा द्वारा समारोह में आये अतिथियों का अभिवादन करते हुए स्वागत भाषण दिया गया तथा विश्वविद्यालय की उपलब्धियों को अतिथियों के समक्ष रखा गया। समारोह की शुरुआत में विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा मंत्रोच्चार तथा कुलगीत प्रस्तुत किया गया।
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