कैलाश सिंह विकास वाराणसी
वाराणसी। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान विभाग एवं भारतीय गांधी अध्ययन समिति के संयुक्त तत्वावधान में शुक्रवार को सुबह 11 बजे संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के मुख्य भवन में तीन दिवसीय 44 व अधिवेशन प्रारम्भ हुआ। सामाजिक विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर राजनाथ ने बताया कि अधिवेशन के प्रथम दिन का विषय "गांधी दर्शन का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य और आधुनिक भारत है।" उन्होंने कहा कि समसामयिक ज्वलंत मुद्दों एवं चुनौतियों पर विचार विमर्श करने और गांधीवादी सोच के माध्यम से संभावित समाधान ढूंढना प्रमुख उद्देश्य है। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी सहस्त्राब्दी के पुरुष हैं, वह एक राजनीतिज्ञ, दार्शनिक, पत्रकार, वकील, समाज सुधारक और सबसे बढ़ कर संत थे। उनका बहुआयामी जीवन पीड़ितों के सेवा हेतु समर्पित था। गांधी जी की विशिष्टता इस बात में थी कि उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को जन आंदोलन में परिवर्तित कर दिया। उन्होंने सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, सत्याग्रह के सनातन मूल्यों को न केवल अपने जीवन में उतरा बल्कि इन्हें स्वतंत्रता आंदोलन का आधार भी बनाया।
कार्यक्रम का शुभारंभ ब्राह्मणों द्वारा वैदिक मंत्रोच्चार एवं मुख्य अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। प्रारम्भ में कलाकारों ने गाँधी जी का प्रिय और प्रेरणादायक भजन "वैष्णव जन को केरे कहिए पीर पराई जाने रे" प्रस्तुत किया।
तीन दिवसीय इस कार्यक्रम के प्रथम दिन 15 दिसंबर को अधिवेशन का उद्घाटन काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास परिषद के अध्यक्ष एवं संस्कृत विश्वविद्यालय के सेवानिवृत प्रोफेसर नागेंद्र पांडेय रहे। इस अधिवेशन में संपूर्ण भारतवर्ष से गांधी विचारों से प्रभावित वक्ताओं ने प्रतिभाग किया और अपने विचार प्रस्तुत किया।
भारतीय गांधी अध्ययन समिति के महासचिव सीताराम चौधरी ने अपने वक्तव्य में कहा कि गांधीजी अपने समय की तुलना में 21वी सदी में 5G की दुनिया में भी अत्यंत प्रासंगिक है। उन्होंने गांधी जी के सत्य के प्रति आस्था को बताते हुए कहा कि एक बार काशी भ्रमण के दौरान गंगा घाट पर राम की कथा सुना रहे हैं वक्ता ने जब कहा कि रावण अपनी चतुर्मुखी सेना के साथ युद्ध रहा था तथा राम वनवासी वेश में पैदल ही बंदरो और भालुओं को लेकर युद्ध लड़ रहे थे लेकिन रावण असत्य के रथ पर सवार था और राम सत्य के रथ पर सवार थे इसलिए राम की विजय हुई। इस वक्तव्य का गांधी जी के जीवन पर प्रभावशाली असर हुआ और उन्होंने सत्य को ही अपना जीवन बना लिया।
मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए प्रो. शीला राय ने कहा कि गांधी का दर्शन समय के बंधन में नहीं बंधा है बल्कि वह सभी काल एवं देश के लिए प्रासंगिक है। भारत को संगठित देश बनाना चाहते हैं तो गांधी के विचारों को सभी जगह पर प्रचारित करना होगा। उन्होंने कहा कि जब देश अंग्रेजों का गुलाम था और देशवासियों को हर क्षण अंग्रेज हीन दिखाने का प्रयास करते थे, उस वक्त गाँधीजी ने स्वराज के लिए सत्य एवं अहिंसा की परिकल्पना देकर अंग्रेजों की शैतानी सभ्यता को चुनौती दिया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास परिषद के अध्यक्ष एवं संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर प्रोफेसर नागेंद्र पांडे ने कहां की गांधी के विशाल व्यक्तित्व एवं जीवन ने भारत ही नहीं पूरे विश्व को प्रभावित किया है, उनके जीवन से ज्ञान-विचार और आदर्श को आचरण में उतारना सिखा जा सकता है, गांधी जी व्यापक और असीमित है। उन्होंने संदेश दिया कि जन-जन को ईश्वर माने और दूसरों के प्रति करुणा, प्रेम, दया का भाव रखें यही मानवता का धर्म और लक्षण है।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति महोदय ने बोलते हुए कहा कि मोहनदास करमचंद गांधी से महात्मा गांधी तक का सफर तय करना किसी महापुरुष द्वारा ही संभव हो सकता है। पाश्चात्य विद्या में शिक्षा लेने के बावजूद भारतीय सभ्यता, भारतीयता, दर्शन एवं विधाओं को पढ़कर आत्मसात और जीवन में उतरा। त्याग, समर्पण, सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह एवं अनुशासन ने गांधी जी को महात्मा बना दिया।
धन्यवाद ज्ञापन देते हुए सामाजिक विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष राजनाथ ने वक्ताओं एवं उपस्थित श्रोताओं का आभार व्यक्त किया साथ ही उन्होंने कहा कि गांधी जी की विचारधारा पूरी दुनिया के लिए प्रासंगिक है। कार्यक्रम का संचालन शैलेश कुमार मिश्र ने किया।
इस अवसर पर उड़ीसा के प्रो. सुधीर जैन, प्रो. वी.सी. चौधरी, एम.एस. हेगड़े, प्रो. राम किशोर त्रिपाठी, प्रो. रामपूजन पांडेय, पूर्व कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल, डॉ. सदानन्द राय, प्रो. हर्षवर्धन राय डा कैलाश सिंह विकास, डा अर्जुन मिश्र, डा शरद सहित संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे शिवम तिवारी, धनंजय पांडेय, श्रुति दुबे, शालिनी त्रिपाठी डि समेत सैकड़ो छात्र-छात्राए एवं गांधीवादी कार्यकर्ता मौजूद रहे।
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