उत्तर प्रदेश में यूरिया किल्लत: खेती की सेहत पर संकट, सरकार की सब्सिडी बनी सहारा
किसानों में यूरिया का बढ़ता इस्तेमाल
यूपी के किसान उत्पादन बढ़ाने के लिए यूरिया का ज्यादा प्रयोग कर रहे हैं।
संतुलित खाद की बजाय केवल यूरिया पर निर्भरता बढ़ रही है।
इसका असर मिट्टी की उर्वरा शक्ति और फसल की गुणवत्ता पर पड़ रहा है।
विशेषज्ञों की चेतावनी
अंधाधुंध यूरिया प्रयोग से जमीन बंजर होने का खतरा।
भूमिगत जल पर भी नकारात्मक असर।
फसल की लागत धीरे-धीरे बढ़ रही है।
सरकार की बड़ी सब्सिडी
एक बोरी (45 किलो) यूरिया की असली कीमत लगभग ₹2,500।
किसानों को मिलती है सिर्फ ₹266 प्रति बोरी में।
सस्ती कीमत और त्वरित असर के चलते किसान यूरिया पर ज्यादा निर्भर।
समाधान की ओर कदम
राज्य सरकार चला रही है जागरूकता अभियान।
मिट्टी परीक्षण पर जोर, ताकि संतुलित खाद का पता चल सके।
जैविक खाद, डीएपी और एनपीके के इस्तेमाल को बढ़ावा।
बड़ी चुनौती
जब तक किसान मानसिकता नहीं बदलते, तब तक "यूरिया की लत" छूटना मुश्किल।
खेती की स्थिरता और मिट्टी की सेहत के लिए जरूरी है संतुलित खाद का प्रयोग।