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विशुद्ध चक्र और साधना विज्ञान : वाणी, रचनात्मकता और चेतना का संगम

विशुद्ध चक्र और साधना विज्ञान : वाणी, रचनात्मकता और चेतना का संगम


लेखक : आनन्द किरण

विशुद्ध चक्र, जिसे गले का चक्र भी कहा जाता है, हमारी आध्यात्मिक यात्रा का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यह इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों का पाँचवाँ मिलन बिंदु है, जो गले के पीछे रीढ़ की हड्डी में स्थित है। संचार, अभिव्यक्ति और रचनात्मकता इस चक्र की मुख्य विशेषताएँ हैं। जब यह संतुलित होता है, तो व्यक्ति न केवल अपनी वाणी में निखार लाता है बल्कि विचारों और भावनाओं को भी शुद्ध और सशक्त रूप से व्यक्त कर पाता है।


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विशुद्ध चक्र की 16 वृत्तियाँ

यह चक्र 16 पंखुड़ियों वाले कमल के रूप में वर्णित है। प्रत्येक पंखुड़ी एक विशिष्ट ध्वनि या वृत्ति का प्रतिनिधित्व करती है। इन्हें तीन श्रेणियों में बाँटा गया है :

1. वैदिक वृत्तियाँ (संगीतमय चेतना)

भारतीय शास्त्रीय संगीत के सप्त स्वर (सा, रे, गा, मा, पा, धा, नी) यहाँ से उत्पन्न होते हैं।

षडज (सा) : मोर की मधुर ध्वनि

ऋषभ (रे) : बैल की प्रबल आवाज़

गांधार (गा) : बकरे की तीव्र ध्वनि

मध्यम (मा) : हिरण की कोमल ध्वनि

पंचम (पा) : कोयल की सुरीली ध्वनि

धैवत (धा) : गधे की कठोर ध्वनि

निषाद (नी) : हाथी की प्रबल ध्वनि


2. तांत्रिक वृत्तियाँ (मंत्र शक्ति)

ॐ : सृष्टि की आदिम ध्वनि

हुं : कुंडलिनी जागरण की ध्वनि

फट : सिद्धांतों को व्यवहार में बदलने की शक्ति

वौषट् : सांसारिक ज्ञान से परे अनुभव

वषट् : सूक्ष्म जगत में कल्याणकारी वृत्ति

स्वाहा : निस्वार्थ कर्म की अभिव्यक्ति

नमः : परम सत्ता के प्रति समर्पण


3. परा-आध्यात्मिक वृत्तियाँ (द्वैत का अनुभव)

विष : नकारात्मकता और अज्ञानता

अमृत : दिव्यता और अमरत्व

 

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साधना में विशुद्ध चक्र का प्रभाव

1. विद्या साधक (आध्यात्मिक मार्ग)

आत्मिक आनंद – रसास्वादन की अनुभूति

ज्ञान और अंतर्दृष्टि – वाणी में शक्ति और गूढ़ सत्यों की अभिव्यक्ति

उच्च चेतना से जुड़ना – ब्रह्मांडीय ध्वनियों का अनुभव

सत्य की अभिव्यक्ति – निर्भय और निर्मल वाणी


2. अविद्या साधक (सांसारिक मार्ग)

कलाओं में उत्कृष्टता – गायन, लेखन, वक्तृत्व आदि

सामाजिक प्रभाव – लोगों को प्रभावित करने की क्षमता

रचनात्मक शक्ति – नए विचार और कला का सृजन

भौतिक सफलता – प्रसिद्धि, सम्मान और समृद्धि


निष्कर्ष

विशुद्ध चक्र केवल वाणी और संचार का केंद्र नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक और सांसारिक जगत का संगम बिंदु है। इसका संतुलन व्यक्ति को दो मार्ग प्रदान करता है –

एक, जो आंतरिक मुक्ति और आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है।

दूसरा, जो बाहरी सफलता और सामाजिक प्रभाव की ओर मार्गदर्शन करता है।


अतः, यह साधक पर निर्भर है कि वह इस ऊर्जा का उपयोग किस दिशा में करता है।

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