ललना चक्र : साधना विज्ञान का गुप्त द्वार
—आनन्द किरण
भारतीय आध्यात्मिक परंपरा में साधना विज्ञान जितना गहन है, उतना ही रहस्यमय भी। पंच तत्वों की साधना से लेकर कुंडलिनी जागरण तक, साधक के भीतर अनेक ऊर्जा केंद्र कार्यरत रहते हैं। इन्हीं में से एक है ललना चक्र—एक सूक्ष्म किंतु अत्यंत महत्वपूर्ण ऊर्जा केंद्र।
कहा जाता है कि यह चक्र नासिका के उग्र भाग में, दोनों भौंहों के मध्य भ्रूमध्य से थोड़ा नीचे, आज्ञा चक्र से नीचे और विशुद्ध चक्र से ऊपर स्थित है। आकार या रंग में यह किसी निश्चित परिभाषा में बंधा नहीं होता; यह साधक की चेतना, सामर्थ्य और स्पंदन के अनुसार अपना रूप बदलता है।
पंच तत्व और साधना की दृष्टि
सृष्टि के आधार माने गए पंच तत्व—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश—जब साधना में आते हैं तो उनकी केंद्रित साधना का स्थल यही ललना चक्र बनता है। साधक जब इन तत्वों पर ध्यान केंद्रित करता है, तो उसके भीतर भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तरों पर सूक्ष्म परिवर्तन घटित होते हैं। यह साधना मात्र मानसिक अभ्यास नहीं, बल्कि चेतना की परतों को खोलने वाली एक आंतरिक यात्रा है।
कुंडलिनी और ललना चक्र का संगम
कुंडलिनी शक्ति का जागरण भारतीय साधना परंपरा का चरम लक्ष्य माना गया है। यह शक्ति जब मेरुदंड के आधार से उठकर इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों से प्रवाहित होती है, तो ललना चक्र उसका एक साक्षी और नियंत्रक बनकर उभरता है। यही चक्र साधक को इस अद्भुत यात्रा के अनुभवों को समझने और आत्मसात करने की क्षमता प्रदान करता है। इसे आत्म-साक्षात्कार का द्वार भी कहा जा सकता है।
सदुपयोग और दुरुपयोग का प्रश्न
हर शक्ति की भांति, ललना चक्र की शक्ति का उपयोग भी साधक के इरादे पर निर्भर करता है। एक विद्या साधक इसके माध्यम से अज्ञानता के बंधन तोड़कर आत्मिक कल्याण और मोक्ष के पथ पर अग्रसर होता है। वहीं, एक अविद्या साधक यदि इसका प्रयोग अहंकार, भौतिक लाभ या दूसरों पर नियंत्रण हेतु करता है, तो वह अपने आध्यात्मिक मार्ग से भटककर पतन की ओर बढ़ता है।
ललना चक्र हमें यह सिखाता है कि साधना का सार केवल शक्ति का अर्जन नहीं, बल्कि उसका सदुपयोग है। यही वह केंद्र है जो साधक को उसकी आंतरिक चेतना से जोड़कर उसके वास्तविक स्वरूप का बोध कराता है।