तहसीलों में सीएम योगी की सख्ती भी नाकाम, जमीन के खेल में लेखपाल बने अरबपति
राजस्व विभाग में भ्रष्टाचार की नई परतें, कहीं गरीब विधवा को अमीर दिखाया तो कहीं सरकारी जमीनें हड़पीं
डेस्क न्यूज़
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की तहसीलों में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के तमाम सख्त आदेश भी बेअसर साबित हो रहे हैं। राजस्व विभाग के लेखपाल और कानूनगो अब करोड़ों की सम्पत्तियों के मालिक बन बैठे हैं। जमीनों की बंदरबांट और प्रमाणपत्रों में हेराफेरी ने लेखपालों को ‘मिनी अरबपति’ बना दिया है।
जमीनों के खेल से बदली तकदीर
कभी मामूली वेतन पर काम करने वाले लेखपाल अब डिग्री कॉलेज, पेट्रोल पंप, मैरिज होम और आलीशान मकानों के मालिक बन चुके हैं। जांच एजेंसियों के अनुसार, कुछ लेखपालों की हैसियत सौ करोड़ रुपये के पार पहुंच चुकी है।
कानपुर के एक लेखपाल आलोक दुबे की कहानी इसका बड़ा उदाहरण है — जिनकी 50 से अधिक संपत्तियों की कीमत सौ करोड़ से अधिक बताई जाती है। रिंग रोड परियोजना के दौरान अधिग्रहित जमीनों से करोड़ों का मुआवजा उठाने का आरोप भी उन्हीं पर है।
गरीबों की फाइलों पर अमीरी की कलम
रिश्वत न मिलने पर कई लेखपाल गरीबों की फाइलों में ऐसी “उलटी रिपोर्ट” दर्ज कर देते हैं कि मासूम लोग सरकारी योजनाओं से वंचित रह जाते हैं। अयोध्या में एक विधवा के बेटे को छात्रवृत्ति इसलिए नहीं मिल सकी क्योंकि लेखपाल ने उसकी मां की आय “पांच करोड़ सालाना” लिख दी थी।
फर्जी प्रमाणपत्रों से खेली भर्ती
लेखपालों की संलिप्तता आंगनबाड़ी भर्ती जैसे संवेदनशील मामलों तक पहुंच गई है। फर्जी आय प्रमाणपत्रों के जरिए संपन्न परिवारों की महिलाओं को गरीब दिखाकर नियुक्तियां कराई गईं। गाजीपुर में दस लेखपाल निलंबित हुए, पर कई जिलों में जांच आज तक अधूरी है।
सिस्टम में बैठे ‘राजस्व के रईस’
लखनऊ में बर्खास्त लेखपाल सुशील शुक्ला ने 60 करोड़ की सरकारी जमीन अपने परिजनों के नाम कर दी थी, जबकि आगरा के लेखपाल भीमसेन के पास तीन कॉलेज, तीन पेट्रोल पंप और विधायक के साथ साझे में जमीनें थीं। फर्रुखाबाद, मैनपुरी और नोएडा तक फैली इनकी सम्पत्तियां बताती हैं कि राजस्व विभाग में भ्रष्टाचार अब “पद” से नहीं, “नेटवर्क” से मापा जाता है।
सवाल बड़ा है — जवाब कौन देगा?
सरकार ने डिजिटल खसरा-खतौनी, ऑनलाइन प्रमाणपत्र और शिकायत पोर्टल जैसे कई सुधार लागू किए, लेकिन भ्रष्टाचार की जड़ें अब भी तहसीलों के गलियारों में जिंदा हैं। सवाल यह है कि जब ‘निचले स्तर’ के अफसर अरबों की सम्पत्तियों के मालिक बन जाएं, तो ऊपर की निगरानी व्यवस्था आखिर कहां है?
खबर का स्रोत - संदेश वाहक विशेष रिपोर्ट