चाँदनी में समर्पण
शहर से दूर एक छोटी-सी पहाड़ी पर बसे एकांत रिसॉर्ट में, साक्षी और आरव अपने रिश्ते को एक नया मोड़ देने आए थे। सात सालों से साथ रहने के बाद, वे दोनों जीवन की आपाधापी में कहीं खो गए थे। यह यात्रा उनके रिश्ते को फिर से संवारने का एक प्रयास थी।
रात का अंधेरा घना हो चला था, लेकिन चाँदनी अपनी पूरी आभा में थी। झील के किनारे बने लकड़ी के पुल पर साक्षी और आरव खामोश बैठे थे। ठंडी हवा उनके चेहरों को छू रही थी, और दूर पहाड़ियों के पीछे से झरने की मधुर आवाज़ आ रही थी।
"आरव, क्या हमारे रिश्ते में पहले जैसी बात नहीं रही?" साक्षी ने धीरे से कहा, उसकी आवाज़ में हल्की उदासी थी।
आरव ने उसकी ओर देखा, उसकी आँखों में चिंता थी, पर प्यार भी। उसने साक्षी का हाथ थामा और मुस्कुराकर कहा, "साक्षी, प्यार कभी कम नहीं होता, बस हम उसे महसूस करना भूल जाते हैं।"
उस रात, चाँदनी की शीतल रोशनी में समर्पण का एक नया एहसास जन्म ले रहा था। आरव ने साक्षी को अपनी बाहों में भर लिया, जैसे सारे गिले-शिकवे चाँद की रोशनी में पिघल गए हों।
"चलो, आज फिर से एक-दूसरे से वही वादे करें जो हमने पहली बार किए थे," आरव ने साक्षी की आँखों में झांकते हुए कहा।
साक्षी की आँखों में नमी थी, लेकिन होंठों पर हल्की मुस्कान भी। उसने धीरे से कहा, "मैं हमेशा तुम्हारा साथ दूंगी, चाहे कैसी भी परिस्थिति हो।"
आरव ने उसकी उंगलियों को कसकर पकड़ लिया और कहा, "और मैं हमेशा तुम्हें हँसाने की कोशिश करता रहूंगा, क्योंकि तुम्हारी मुस्कान ही मेरी दुनिया है।"
झील का पानी चाँद की रोशनी में चांदी जैसा चमक रहा था, और उसके किनारे खड़े दो प्रेमी अपने रिश्ते को एक नए संकल्प के साथ संवार रहे थे। समर्पण का यह अहसास चाँदनी की उस रात में अमर हो गया।