लीलाएं छोड़ो युग संभालों सदविप्रों
लेखक - करण सिंह शिवतलाव , प्रधानाचार्य आर पी एस जयपुर
नेपाल की भूमि सदियों से शांति और आध्यात्मिकता का प्रतीक रही है, लेकिन हाल के घटनाक्रमों ने इस शांत सरोवर में उग्र लहरें पैदा कर दी हैं। यह विद्रोह किसी तात्कालिक चिंगारी का परिणाम नहीं, बल्कि सदियों से चली आ रही आर्थिक असमानता, भ्रष्टाचार और राजनीतिक अव्यवस्था का परिणाम है। जैसे कोई ज्वालामुखी हजारों वर्षों से भीतर ही भीतर लावा को समेटे रहता है, और अंततः एक दिन प्रचंड विस्फोट के साथ अपनी सारी पीड़ा बाहर निकाल देता है, उसी तरह नेपाल का यह विद्रोह भी एक पुरानी, जर्जर और दूषित व्यवस्था के खिलाफ शोषित वर्ग का आक्रोश है। यह एक ऐसी चिंगारी है जो पुरानी व्यवस्था को जड़ से खत्म करने की क्षमता रखती है।
आज, जब नेपाल के लोग 'जेड जेन' या 'हामी नेपाल' जैसे संगठनों के माध्यम से अपनी आवाज उठा रहे हैं, तो हमारा ध्यान केवल तात्कालिक समाधानों पर केंद्रित नहीं होना चाहिए। हमें यह समझना होगा कि ये आंदोलन सिर्फ चेहरों को बदलने या कुछ सतही सुधारों को लागू करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। इतिहास में ऐसे कई सत्ता परिवर्तन हुए हैं जो केवल कुछ समय के लिए उम्मीद जगाते हैं और फिर पुरानी समस्याओं की गर्त में समा जाते हैं। इसलिए, हमें एक ऐसे विकल्प की तलाश करनी होगी जो नेपाल को एक मजबूत, गौरवशाली और स्थायी भविष्य की ओर ले जा सके। यह विकल्प कोई साधारण राजनीतिक सिद्धांत नहीं, बल्कि एक ऐसा समग्र दर्शन होना चाहिए जो समाज के हर पहलू - आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक - को एक साथ संबोधित करे। प्रगतिशील उपयोग सिद्धांत (PROUT), जिसे प्रउत के नाम से जाना जाता है, इसी तरह का एक क्रांतिकारी और पूर्ण समाधान प्रस्तुत करता है।
प्रउत: एक नया युग, एक नई व्यवस्था
प्रउत के संस्थापक, श्री प्रभात रंजन सरकार, ने एक ऐसी व्यवस्था की कल्पना की थी जहाँ समाज के सभी सदस्यों को उनकी न्यूनतम आवश्यकताएँ - भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा और चिकित्सा - बिना किसी भेदभाव के सुनिश्चित हों। यह सिद्धांत केवल आर्थिक सुधारों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक नैतिक और आध्यात्मिक जागरण का आह्वान भी करता है। नेपाल के संदर्भ में, प्रउत एक नई सुबह ला सकता है। भ्रष्टाचार और असमानता की समस्या से जूझ रहे नेपाल के लिए, प्रउत का उत्पादन का विकेंद्रीकरण का सिद्धांत एक वरदान साबित हो सकता है। यह केंद्रीकृत, पूंजीवादी या समाजवादी व्यवस्थाओं से अलग, एक ऐसी आर्थिक प्रणाली का प्रस्ताव करता है जहाँ उत्पादन और वितरण की शक्ति स्थानीय समुदायों के हाथों में हो।
यह सिद्धांत नेपाल की 9 सामाजिक-आर्थिक इकाइयों के लिए सबसे उपयुक्त है । लिंबु, शेरपा, राय/किरात, नेवारी, तामांग, गुरुंग, मगर, थारु और गोरखाली - ये सभी समाज अपनी अनूठी सांस्कृतिक पहचान, भौगोलिक संरचना और आर्थिक चुनौतियों के साथ मौजूद हैं। प्रउत के अनुसार, इन इकाइयों को एक दूसरे से अलग करने के बजाय, उन्हें एक मजबूत सहकारी नेटवर्क में संगठित किया जाना चाहिए। प्रत्येक इकाई अपनी प्राकृतिक और मानव संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करके आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बन सकती है। उदाहरण के लिए, शेरपा समाज, जो सोलुखुंबू जिले में केंद्रित है, अपनी प्राकृतिक विरासत का उपयोग पर्यटन के माध्यम से कर सकता है, जबकि थारु समाज, जो तराई क्षेत्र में है, कृषि और संबंधित उद्योगों में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकता है।
सहकारिता और विकेंद्रीकरण: नेपाल के लिए मार्ग
प्रउत के अनुसार, नेपाल की अर्थव्यवस्था का आधार सहकारी समितियां होनी चाहिए। उत्पादन, वितरण और उपभोग की पूरी प्रक्रिया इन समितियों के माध्यम से संचालित होनी चाहिए। इन इकाइयों में किसान, मजदूर, शिल्पी और छोटे उद्यमी शामिल हो सकते हैं, जो सामूहिक रूप से काम करके अपनी आर्थिक समस्याओं का समाधान कर सकते हैं। यह मॉडल न केवल आर्थिक विकास को गति देगा, बल्कि सामाजिक एकजुटता और भावनात्मक एकता को भी मजबूत करेगा। जब लोग मिलकर काम करेंगे, तो उनकी आपसी समझ बढ़ेगी और नस्लीय तथा जातीय भेदभाव कम होगा। यह 'हामी नेपाल' की भावना को एक ठोस आर्थिक आधार देगा, जो केवल एक भावनात्मक नारा नहीं रहेगा, बल्कि एक सशक्त और प्रगतिशील राष्ट्र की नींव बनेगा।
प्रउत का एक और महत्वपूर्ण सिद्धांत है "कोई भी व्यक्ति बिना काम के नहीं रहेगा और हर व्यक्ति को उसकी क्षमता के अनुसार काम मिलेगा"। नेपाल में युवा बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है, जिसके कारण युवा या तो विदेश पलायन कर रहे हैं या फिर निराशा और आक्रोश का शिकार हो रहे हैं। प्रउत के विकेंद्रीकृत आर्थिक मॉडल से, प्रत्येक सामाजिक-आर्थिक इकाई अपनी स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार रोजगार के अवसर पैदा कर सकती है। इससे न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था मजबूत होगी, बल्कि युवा अपनी मातृभूमि के विकास में योगदान दे सकेंगे।
नैतिक नेतृत्व और सांस्कृतिक पुनर्जागरण
किसी भी व्यवस्था की सफलता उसके नेतृत्व पर निर्भर करती है। नेपाल में भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा है, जो लोगों के विश्वास को हिला रहा है। प्रउत ऐसे नेतृत्व का आह्वान करता है जो भौतिकवाद से परे, नैतिकता और आध्यात्मिकता पर आधारित हो। ऐसा नेतृत्व केवल सत्ता के लिए नहीं, बल्कि समाज के कल्याण के लिए काम करेगा। इस तरह के नेता भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए दृढ़ संकल्पित होंगे और जनता के बीच विश्वास बहाल करेंगे।
नेपाल एक सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राष्ट्र है। यहां के विभिन्न समाजों की अपनी विशिष्ट भाषाएं, लोकगीत, नृत्य और परंपराएं हैं। प्रउत के अनुसार, ये सभी सांस्कृतिक विविधताएं राष्ट्र की शक्ति हैं, न कि उसकी कमजोरी। एक मजबूत नेपाल का निर्माण तभी संभव है जब प्रत्येक समाज की सांस्कृतिक विरासत का सम्मान हो और उसे संरक्षित किया जाए। प्रउत एक ऐसे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का समर्थन करता है जो भाषाई और जातीय दीवारों को गिराकर सभी को एक साझा नेपाली पहचान के सूत्र में बांधता है। यह नेपाल के 'हामी नेपाल' आंदोलन की भावना के अनुरूप है, लेकिन इसे एक ठोस वैचारिक आधार देता है।
नेपाल की 9-सूत्रीय योजना: एक प्रउतवादी दृष्टिकोण
आइए, नेपाल के विकास के लिए प्रस्तावित इस 9-सूत्रीय योजना को प्रउत की विचारधारा के चश्मे से देखें:
लिंबु समाज:- प्रांत नंबर 1 के छह जिलों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए, लिंबु समाज को सामूहिक कृषि, चाय उत्पादन और हस्तशिल्प में सहकारी समितियों का गठन करना चाहिए। इससे वे न केवल अपनी आर्थिक समस्याओं का समाधान करेंगे, बल्कि अपनी सांस्कृतिक पहचान को भी मजबूत करेंगे।
शेरपा समाज : सोलुखुंबू जैसे मजबूत जिले को पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए एक एकीकृत योजना बनानी चाहिए। यहाँ पर्वतारोहण, ट्रेकिंग और सांस्कृतिक पर्यटन के माध्यम से राजस्व बढ़ाया जा सकता है, जिसका लाभ सभी शेरपा समुदाय को हो।
राय/किरात समाज : उदयपुर, भोजपुर, खोटांग जैसे जिलों में कृषि-आधारित उद्योगों और जलविद्युत परियोजनाओं को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। ये परियोजनाएं सहकारी मॉडल पर आधारित हों ताकि लाभ का वितरण सभी सदस्यों को समान रूप से हो।
नेवारी समाज : काठमांडू घाटी के तीन जिलों में, नेवारी समाज को पारंपरिक कला, हस्तशिल्प और सांस्कृतिक पर्यटन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
तामांग समाज : नौ जिलों के इस विशाल समूह को कृषि, पशुपालन और लघु उद्योगों के लिए एक विशाल सहकारी नेटवर्क स्थापित करना चाहिए।
गुरुंग समाज : गोरखा, मनांग जैसे जिलों में हिमालयी उत्पादों, जड़ी-बूटियों और पर्यटन पर आधारित अर्थव्यवस्था का निर्माण किया जा सकता है।
मगर समाज : 10 जिलों के इस समूह को कृषि और वन-आधारित उद्योगों के लिए एक मजबूत सहकारी ढांचा बनाना चाहिए।
थारु समाज : तराई क्षेत्र के थारु समाज को कृषि, मत्स्यपालन और संबंधित उद्योगों में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए सहकारी समितियों को सशक्त बनाना चाहिए।
गोरखाली समाज : गोरखाली समाज, जो पश्चिमी नेपाल में फैला है, अपनी भौगोलिक विविधता का लाभ उठाकर कृषि, वन-आधारित उत्पादों और पर्यटन के माध्यम से एक आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था का निर्माण कर सकता है।
बाकी बचे जिलों को भी इसी तरह की सामाजिक-आर्थिक इकाइयों में संगठित किया जा सकता है। यह योजना नेपाल को एक ऐसी आर्थिक और सामाजिक संरचना देगी जो किसी बाहरी शक्ति पर निर्भर नहीं होगी। यह एक ऐसा मॉडल है जो नेपाल की विशिष्ट परिस्थितियों के अनुकूल है और उसे एक स्थायी और प्रगतिशील भविष्य की ओर ले जा सकता है।
नेपाल में हाल का विद्रोह सिर्फ एक चेतावनी नहीं, बल्कि एक अवसर है। यह एक अवसर है एक नई दिशा चुनने का, एक नया युग शुरू करने का। 'लीला छोड़ो, युग संभालो' का अर्थ यही है कि हमें सत्ता की अस्थिरता और भ्रष्टाचार के खेल को छोड़कर, एक ऐसे युग की शुरुआत करनी चाहिए जो प्रगतिशील, न्यायपूर्ण और स्थायी हो। प्रउत के सिद्धांत नेपाल को इस दिशा में ले जा सकते हैं। यह सिर्फ एक राजनीतिक या आर्थिक योजना नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक, नैतिक और आध्यात्मिक क्रांति का आह्वान है जो नेपाल को एक मजबूत, गौरवशाली और आत्मनिर्भर राष्ट्र बना सकता है।
(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं)