लवकुश जी महराज कथा वाचक दान का अहंकार ही बना बलि के पतन का कारण।
रिपोर्ट राकेश सरदारनगर गोरखपुर।
चौरी चौरा क्षेत्र के सरदार नगर ब्लाक के अंतर्गत डुमरी खास में हो रहे।श्रीमद्भागवत महापुराण कथा के पाँचवे दिवस पुज्य लवकुश जी महाराज ने कहा कि किसी को कोई कार्य कर के कभी भी अहंकार नही करना चाहिए । दैत्यराज बलि को दान करने का बहुत ही अहंकार हो गया था जबकि अहंकार ही भगवान का भोजन है। भगवान का कार्य ही वही है।रङ्कं करोति राजानं राजानं रङ्कमेव च | धनिनं निर्धनं चैव निर्धनं धनिनं विधिः
भगवान ने अदिति माता के यहा बामन अवतार लेकर और बलि के यहां जाकर तीन पग भुमि की दान की याचना किया जिसको बलि ने दान का संकल्प किया जिसमे भगवान ने एक पग मे आकाश दुसरे पग में भुमि तिसरे पग में राजा बलि को पाताल भेजकर वहां का राजा बनाया ।भविष्य में इन्द्र का पद देने का वरदान दिया। वैदिक मंत्रोच्चार आचार्य संतोष मिश्र व धनंजय पांडेय मुख्य यजमान श्री शंकर गोङ और उनकी धर्मपत्नी विन्दु देवी,नन्हे,पन्ने,रवि कुमार,मनोज कुमार,कुन्दन गोङ,राहुल, रामलवट,गुङीया,पुनम,जयनाथ,रामप्रवेश,अशोक कुमार,संजय, ॠषिकेश,वृजराज यादव जगदीश गुप्ता,रमेश सोनकर, सुर्यनाथ निषाद,शिवप्रसाद, रागिनीदेवी,अराधना,लक्ष्मीदेवी, अनुराधा,गीतादेवी,सतिदेवीगौरीशंकर,सैकङों श्रोताओ ने रसपान किया।