चैतन्य के विभिन्न स्तर
चैतन्य के विभिन्न स्तर
आनन्द मार्ग दर्शन पर आधारित (एक आध्यात्मिक शोध)
प्रस्तुति : - श्री आनन्द किरण देव
चैतन्य के सम्पूर्ण विस्तार को समझने का यह प्रयास आनन्द मार्ग के अध्यात्म दर्शन पर आधारित है, जो अस्तित्व के समस्त आयामों को ऊर्ध्व एवं निम्न लोकों के माध्यम से प्रतीकात्मक रूप से व्यक्त करता है।
*(I) चैतन्य का चरम स्तर: परम सत्ता का धाम*
*आनन्द लोक (Ananda Loka)* -
यह चैतन्य का सर्वोच्च एवं चरम स्तर है, जो मानस सीमा (मन) से पूर्णतः परे है। यह परम सत्य की अवस्था है और निर्गुण ब्रह्म (निराकार, निर्विशेष ब्रह्म) का शाश्वत निवास स्थल है। इस लोक को परम तारकब्रह्म का धाम भी माना जाता है। जो सगुण स्पर्श किये हुए हैं।यहाँ अणु चैतन्य और भूमा चैतन्य का अभिसरण होता है, जो अस्तित्व की मूलभूत प्रकृति सत्-चित्-आनन्द (सच्चिदानंद) के रूप में प्रकट होती है। यह विशुद्ध, अप्रतिबंधित परम आनन्द की अवस्था है। मोक्ष की अवस्था।
*(II) मन के क्रमिक स्तर: ऊर्ध्वमुखी विकास*
ये सात लोक मन के क्रमिक ऊर्ध्वमुखी विकास और मन की विभिन्न अवस्थाओं को दर्शाते हैं।
*१. सत्य लोक (Satya Loka)*
यह परमपुरुष का स्थल तथा सगुण ब्रह्म का निवास है। यह महत्त तत्व और अहं तत्व की उच्चतम भूमि है। यह मुक्ति की वह अवस्था है जहाँ जीवात्मा अपने शुद्ध आध्यात्मिक स्वरूप में स्थित होती है।
*२. तप लोक (Tapa Loka)* -
यह सिद्ध पुरुष एवं तपस्वी जीवों का निवास स्थान है। यह ईश्वर कोटि की चेतना है, जहाँ शुद्ध, केंद्रित आध्यात्मिक ऊर्जा व्याप्त रहती है। इसे हिरण्यमय लोक भी कहा जाता है, जो कठोर तपस्या से प्राप्त होता है। बोधि की स्थिति है।
*३. जन लोक (Jana Loka)*
यह विशेष जन जैसे ऋषि, मुनि, वैज्ञानिक एवं दार्शनिक (जिन्हें उच्च ज्ञान प्राप्त है) का स्तर है। यह लोक विज्ञानमय कोष से संबंधित है, जो विशेष बुद्धि, विवेक और उच्च अंतर्ज्ञान को संचालित करता है।
*४. मह लोक (Maha Loka)*
यह महान स्थल या विराट चेतना का लोक है। यह महापुरुषों के जीने का स्तर है, जिसे अक्सर अतिमानस लोक के रूप में भी समझा जाता है, जहाँ से वैश्विक सत्य और सार्वभौमिक चेतना का ज्ञान प्राप्त होता है।
*५. स्व:लोक (Svaḥ Loka) / स्वर्ग लोक*
यह मनुष्य से उन्नत जीव (देवयानी) का निवास है। यह देवगुण (सत्त्व प्रवृत्ति) वाले लोगों का स्तर है। यह लोक मनोमय कोष से जुड़ा है, जो विचारों, इच्छाओं और भावनाओं के सूक्ष्म रूप का प्रबंधन करता है।
*६. भव लोक (Bhava Loka)* -
यह उन्नत मनुष्य का स्तर है, जो पंचभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) से बने स्थूल शरीर में होते हुए भी उच्च समझ रखते हैं। यह स्थूल मन की ही सूक्ष्म अवस्था को दर्शाता है, जहाँ मानसिक एवं भावनात्मक गतिविधियाँ अपेक्षाकृत परिष्कृत होती हैं। यद्यपि स्थूल लोक फिर चेतना का विकास है।
*७. भूलोक (Bhū Loka)* -
यह साधारण मनुष्य श्रेणी के जीवों का लोक है। यह स्थूल मन की जड़ अवस्था है, जहाँ चेतना भौतिक शरीर और संसार से अत्यधिक जुड़ी रहती है। यह काम मय कोष है।
इसे लोक से नीचे के स्तरों को मनुष्य योनि से निम्न जीवन माना जाता है।
*(III) सप्त-पाताल और जीवन की सात श्रेणियाँ : निम्नमुखी अवरोह*
सप्त-पाताल निम्न चेतना के सात स्तरों का प्रतीकात्मक चित्रण करते हैं, जो मन के भौतिक बंधन की तीव्रता को दर्शाते हैं।
*१. तल (Tala) (पशु योनि / जरायुज बनना)*
'तल' भूलोक की सतह के समीप का स्तर है। इसका शाब्दिक अर्थ तल पर होता है। यह प्रतीकात्मक रूप से पशु योनि (जरायुज/स्तनधारी) को दर्शाता है। इस स्तर की चेतना मुख्यतः सहज प्रवृत्ति (Instinct) और बुनियादी आवश्यकताओं पर केंद्रित होती है।
*२. अतल (Atala) (पक्षी योनि / अंडज बनना)*
'अतल' तल के नीचे का स्तर है, जो पक्षी योनि (अंडज) का प्रतिनिधित्व करता है। अतल का शाब्दिक अर्थ तल रहित है।यह गतिशीलता और सीमित स्वतंत्रता का प्रतीक है। अंडज जीव, भौतिक तल और आध्यात्मिक आकाश के मध्य सेतु का कार्य करते हैं।
*३. वितल (Vitala) (कृमि/सरीसृप योनि)*
'वितल' अतल से नीचे का स्तर है, जिसका शाब्दिक अर्थ तल सहित है। जिसे कृमि अथवा सरीसृप योनि से जोड़ा गया है। यह चेतना के उस निम्नतम स्तर को दर्शाता है जो सीमित गतिशीलता के साथ मंद गति से प्रगति करता है।
*४. तलातल (Talātala) (स्थावर योनि / पेड़-पौधे बनना)*
'तलातल' वितल के नीचे का स्तर है। इसका शाब्दिक तल एवं ऊपर नीचे। इसको प्रतीकात्मक रूप से स्थावर योनि (पेड़-पौधे) को दर्शाता है। यह पूर्ण जड़ता (Inertia) और स्थिरता का द्योतक है, जहाँ सक्रिय गतिशीलता का पूर्ण अभाव होता है।
*५. पाताल (Pātāla) (जलचर योनि)*
'पाताल' तलातल के नीचे का स्तर है, जिसे जलचर जीवों की श्रेणी में लिया गया है। पाताल का शब्द तल के नीचे। जलचर योनि जीवन के उद्गम (Origin) को इंगित करती है, जहाँ चेतना तरल एवं गहन जलमय वातावरण में अपने आरंभिक रूपों में सक्रिय होती है।
*६. अतिपाताल (Atipātāla) (एककोशिकीय जीवों की श्रेणी)*
'अतिपाताल' पाताल से भी नीचे का स्तर है, जो जीवन के सूक्ष्म या आरंभिक प्रयास (एककोशिकीय जीव) की श्रेणी को दर्शाता है। इस स्तर पर, मन भौतिक रूप में अपनी इकाई को विकसित करने का बुनियादी, मूलभूत प्रयास कर रही होती है। अति पाताल का शाब्दिक अर्थ तल से इतना नीचे अर्थात सूक्ष्म की सामान्यतः अदृश्य हो।
*७. रसातल (Rasātala) (जड़ वस्तु बनना)*
'रसातल' सबसे निम्नतम स्तर है, जिसे जड़ वस्तु बनने या पूर्ण अचेतनता (Absolute Inertia) से जोड़ा गया है। यह वह चरम निम्नतम बिंदु है जहाँ जीवात्मा भौतिक बंधन में पूरी तरह से निष्क्रिय (dormant) और निर्जीव हो जाती है (जैसे: पत्थर, खनिज)। रसातल का शाब्दिक अर्थ तल में रसापसा अर्थात तल तुल्य, भौतिक स्थिति, जैविक स्थिति रहित।
सारांश : - चैतन्य की विशुद्ध अवस्था से लेकर चरम जड़त्तम अवस्था का एक विज्ञान है। जो एक साधक के लिए जानना नितांत जरुरी है।