गृह जनपद में मनरेगा घोटालों पर मंत्री मौन! गोरखपुर में बिना काम के हो रहा भुगतान, सिस्टम में खेल जारी
राज्य मंत्री कमलेश पासवान के गृह जनपद गोरखपुर में मनरेगा में धांधली के मामले बढ़े — न काम, न मजदूरी — फिर भी हो रहा भुगतान; सवाल उठे कि मंत्री की निगाह आखिर कब पड़ेगी?
कृपा शंकर चौधरी ब्यूरो गोरखपुर
गोरखपुर — ग्रामीण विकास मंत्रालय की सबसे बड़ी योजना मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) का उद्देश्य ग्रामीण बेरोजगारों को काम देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाना है। लेकिन राज्य मंत्री कमलेश पासवान के गृह जनपद गोरखपुर में इस योजना का चेहरा पूरी तरह भ्रष्टाचार से ढका हुआ दिखाई दे रहा है।
गांव-गांव में ग्राम प्रधानों और ब्लॉक कर्मचारियों की मिलीभगत से बिना काम कराए भुगतान का खुला खेल जारी है। कई जगह तो ऐसा देखा गया कि काम किसी और से कराया गया, लेकिन भुगतान किसी और के नाम से किया गया। जांच में ऐसे भी मामले सामने आए जहां पुरुषों के फोटो लगाए गए, जबकि मजदूर सूची में महिलाओं के नाम दर्ज थे।
स्थानीय लोगों का कहना है कि “गांव में काम दिखता नहीं, लेकिन रिकॉर्ड में सब कुछ पूरा बताया जाता है। मजदूरों को असली रोजगार नहीं मिल रहा, जबकि कागजों पर लाखों का भुगतान दिखाया जा रहा है।”
सबसे बड़ी विडंबना यह है कि यह सब राज्य मंत्री कमलेश पासवान के गृह जनपद में हो रहा है, फिर भी विभागीय कार्रवाई या मंत्री स्तर पर कोई सख्त कदम नहीं उठाया गया। लगातार अखबारों और सोशल मीडिया में मनरेगा घोटालों की खबरें सुर्खियों में हैं, लेकिन मंत्री की चुप्पी अब सवालों के घेरे में है।
जानकारों का कहना है कि “जब मंत्री के अपने जिले में मनरेगा की ऐसी दुर्दशा है, तो बाकी जिलों की स्थिति का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।”
गोरखपुर में कई कार्यस्थलों पर न मजदूर दिखते हैं, न कोई निर्माण गतिविधि, लेकिन भुगतान रिकॉर्ड में पूरा काम पूरा बताया जाता है। ऐसा प्रतीत होता है मानो विभाग में अब नया फार्मूला चल पड़ा हो — “काम बाद में, पेमेंट पहले।”
ग्रामीणों का कहना है कि अगर यही हाल रहा, तो मनरेगा जैसी जनकल्याणकारी योजना भी “कागज़ी विकास” की प्रतीक बनकर रह जाएगी। अब देखना यह है कि मंत्री कमलेश पासवान अपने ही गृह जिले में चल रहे इस मनरेगा घोटाले पर कब बोलते हैं और क्या कदम उठाते हैं।