पूंजीवाद के गढ़ में 'जन सामान्य' की आवाज़ : जोहरान ममदानी की जीत
पूंजीवाद के गढ़ में 'जन सामान्य' की आवाज़ : जोहरान ममदानी की जीत
लेखक :- करण सिंह शिवतलाव
"जहाँ ट्रंप का उदंड है, उस पूंजी के अहंकार पर,
एक नया बीज उगा, उम्मीदों की फसल का।"
जोहरान ममदानी का न्यूयॉर्क शहर का मेयर बनना महज़ एक राजनीतिक घटना नहीं, बल्कि एक युग-परिवर्तनकारी चिंतन का प्रादुर्भाव है। यह जीत उस विश्व-व्यवस्था पर एक सीधा वैचारिक प्रहार है, जहाँ अमेरिका और अधिकांश पूंजीवादी राष्ट्र यह शिक्षा देते रहे हैं कि सत्ता और सिंहासन केवल पूंजीपतियों की आस पर ही जीवित रह सकते हैं। ममदानी ने इस स्थापित नियम को चुनौती दी है, पूंजीवाद के गर्भ में आम आदमी की सोच को सत्ता एवं सिंहासन में प्रतिष्ठित कर दिया है। यह केवल एक राजनैतिक जीत नहीं, बल्कि प्रथम विश्व की दुनिया को दिया गया एक नया, प्रगतिशील चिंतन है।
प्रथम विश्व में सोशलिस्ट विचार की स्वीकार्यता: एक यथार्थ का प्रमाण
भारतीय मूल के, अफ्रीका में जन्मे एक मुस्लिम परिवार के लड़के का न्यूयॉर्क जैसे वैश्विक वित्तीय केंद्र का नेतृत्व करना, निस्संदेह वैश्विक चिन्तन का विषय तो है ही। न्यूयॉर्क, जिसकी पहचान अकूत धन, कॉरपोरेट शक्ति और तीव्र आर्थिक असमानता से जुड़ी है, वहाँ एक डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट नेता का चुना जाना साबित करता है कि "इट्स हैपन्ड़ ऑन इन फर्स्ट वर्ड कंट्री"। यह घटना यह दर्शाती है कि विकसित देशों का नागरिक भी अब केवल लाभ-केंद्रित राजनीति से ऊब चुका है और उसे सामाजिक-आर्थिक न्याय पर आधारित वैकल्पिक व्यवस्था की तलाश है।
ममदानी की चुनावी सफलता, जो किराया-स्थिरता (Rent Stabilization), मुफ्त बस सेवा और मुफ्त सार्वजनिक शिशु देखभाल जैसे जन-कल्याणकारी वादों पर आधारित थी, इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि आम नागरिक अब अपने 'सिंहासन' पर 'पूंजी' नहीं, बल्कि 'मानवीय आवश्यकता' को देखना चाहता है। उन्होंने यह दिखा दिया कि पूंजीवादी समाज के अंदर भी बड़े पैमाने पर लोग ऐसे मॉडल की तलाश में हैं जो आर्थिक असमानता को खत्म कर सके और सरकार का फोकस मुनाफाखोरी की जगह जन-कल्याण पर हो।
नेहरू का उद्धरण और भारतीय संदर्भ: "जब एक युग का अंत होता है..."
ममदानी ने अपनी जीत के जश्न में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के 'ट्रिस्ट विद डेस्टिनी' भाषण के शब्दों को उद्धृत करके एक गहरा संदेश दिया है। नेहरू का यह आह्वान कि,
> "हम पुराने से नए की ओर कदम बढ़ा रहे हैं, जब एक युग का अंत होता है और एक राष्ट्र की आत्मा को अभिव्यक्ति मिलती है,"
ममदानी की जीत को केवल स्थानीय नहीं, बल्कि वैश्विक विचारधारात्मक बदलाव के संदर्भ में स्थापित करता है।
भारत के लिए यह एक महत्वपूर्ण सोच है। भारत में इस 'आम आदमी की सोच' की सफलता का एक प्रयोग हम अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में देख सकते हैं। केजरीवाल की राजनीति ने यह दिखाया है कि सत्ता के सिंहासन पर धार्मिक/जातीय पहचान के बजाय बुनियादी नागरिक आवश्यकताओं (शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी) को केंद्र में रखकर भी निर्णायक जीत हासिल की जा सकती है। यह भारत में 'आम आदमी की सोच' के राजनीतिक विकल्प बनने का एक सफल प्रयोग है।
धर्म, राजनीति और प्राउटिस्टों के लिए नया सूत्र
"भारतवर्ष सत्ता के सिंहासन पर मजहब को लेकर चलता है", भारतीय राजनीति की एक कठोर और निराशाजनक वास्तविकता को दर्शाती है। यद्यपि संस्कृति एवं सभ्यता अवश्य ही व्यक्ति के सामाजिक-आर्थिक उन्नयन में सहायक होते हैं, तथापि उसको मजहबीय सोच के साथ परोसना निस्संदेह अधर्म है। राजनीति का मूल आधार मजहब नहीं, बल्कि सार्वभौमिक मानवता और आर्थिक न्याय होना चाहिए।
> "पहचान की जंजीरें टूटें, विचार की मशाल जले,
> सत्ता का शिखर छूने को, आम आदमी भी चले।"
जोहरान ममदानी की सफलता, जहाँ उन्होंने अपनी मुस्लिम पहचान को अपने प्रगतिशील सोशलिस्ट एजेंडे से पीछे रखा, इस बात का प्रमाण है कि विचारधारा की राजनीति पहचान की राजनीति पर भारी पड़ सकती है। यह भारतीय राजनीतिक चिंतन के लिए एक महत्वपूर्ण सबक है।
अतः, प्राउटिस्टों (Progressive Utilization Theorists) को अपने सामाजिक आर्थिक आंदोलन तथा राजनैतिक विकल्प के लिए एक नया सूत्र देना होगा। यह सूत्र, जो ममदानी और केजरीवाल के अनुभवों से प्रेरणा ले सकता है, निम्नलिखित बिन्दुओं पर आधारित होना चाहिए।
1. आर्थिक न्याय का स्पष्ट खाका (Clear Economic Justice Blueprint) : -
प्राउटिस्टों को ममदानी की तरह, जन-कल्याणकारी नीतियों का एक आकर्षक और व्यवहार्य खाका जनता के सामने प्रस्तुत करना होगा।
इसमें न्यूनतम आवश्यकता की गारंटी (Minimum Necessities Guarantee) और धन तथा संपत्ति के विकेंद्रीकरण की स्पष्ट योजनाएं शामिल होनी चाहिए, ताकि यह संदेश दिया जा सके कि उनकी राजनीति का मूल लक्ष्य केवल मुनाफा नहीं, बल्कि हर नागरिक का कल्याण है।
स्थानीय रोजगार सृजन और सहकारी आर्थिक मॉडल को प्राथमिकता देनी होगी।
2. सांस्कृतिक, किंतु महजबीय तटस्थता (Cultural but Religious Neutrality) : -
प्राउट (PROUT) की विचारधारा सांस्कृतिक उत्थान को महत्व देती है, लेकिन सत्ता की राजनीति को मजहबीय पहचान या मजहबी सोच से पूरी तरह मुक्त रखना आवश्यक है।
सत्ता का सिंहासन केवल मानवीय मूल्यों और सार्वभौमिक सामाजिक आर्थिक हितों के आधार पर स्थापित किया जाना चाहिए।
सांस्कृतिक मूल्यों को सामाजिक चेतना बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करना, लेकिन उन्हें राजनीतिक हथियार नहीं बनने देना।
3. युवा और वैचारिक नेतृत्व (Youth and Ideological Leadership) : -
ममदानी की जीत में युवा और प्रगतिशील मतदाताओं की बड़ी भूमिका थी। प्राउटिस्टों को भी युवा नेतृत्व को आगे लाना होगा जो परिवर्तन की ऊर्जा से भरा हो।
सोशल मीडिया और आधुनिक संचार तकनीक का उपयोग करके अपनी "जनसामान्य की सोच" को प्रभावी ढंग से, सरल भाषा में जनता तक पहुंचाना होगा।
विचारधारा को व्यक्तिगत या स्थानीय पहचान से ऊपर रखना।
4. जन-समस्याओं पर सीधा ध्यान (Direct Focus on People's Issues) : -
केजरीवाल मॉडल की तरह, राजनीति को धर्म और जाति से हटाकर सीधे नागरिक समस्याओं (बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन) पर केंद्रित करना।
शासन को पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त बनाने पर ज़ोर देना, जो आम आदमी के विश्वास को जीतने के लिए अपरिहार्य है।
निष्कर्ष: युग की कसौटी
> "रणभेरी बज चुकी है, अब नए युग का आगाज है,
> सपनों को यथार्थ करने का, अब नया मिजाज है।"
जोहरान ममदानी की विजय, एक ऐसे दौर में जब वैश्विक पूंजीवाद की विषमताओं ने अमीर और गरीब के बीच की खाई को और चौड़ा कर दिया है, एक उम्मीद की किरण है। यह वैश्विक पटल पर उस नई राजनीतिक चेतना का उदय है जो कहती है कि सर्वजन हित व सर्वजन सुख ही अंतिम सत्ता है। यह एक स्पष्ट संकेत है कि पूंजीवादी गढ़ भी अब सर्वजन हित व सुख की सोच के आगे झुकने को तैयार है।
ममदानी सोच कितनी सफल होगी, यह ममदानी के मेयर के रूप में उठाए गए कदमों और उनके परिणामों पर निर्भर करेगा— यह तो युग ही बताएगा। लेकिन इसने एक नया चिंतन आरंभ कर दिया है, एक ऐसा चिंतन जो भारत जैसे विश्व के सभी लोकतांत्रिक देश के लिए भी मजहबी राजनीति से ऊपर उठकर सर्वजन हित, सर्वजन सुख के शासन की दिशा में एक स्पष्ट मार्ग प्रशस्त करता है।
आओ प्राउटिस्टों एक संकल्प लें एक नये युग का निर्माण करें, जहाँ प्रगतिशील उपयोग तत्व सर्वजन हित एवं सर्वजन सुख के प्रचारित उद्देश्य को सफल बने।