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पत्रकारिता की चुनौतियां

पत्रकारिता की चुनौतियां

लेखक - नरसिंह, पूर्व प्रधानाचार्य 

पत्रकारिता एक महत्वपूर्ण साहित्यिक विधा है, जो समाज के दैनिक जीवन से संबंधित घटित होने वाली घटनाओं का प्रकटीकारण करता है साहित्य सर्वदा सहितेन होता है | कल्याण धर्मिता इसका प्राण है, जो पत्रकारिता जनहित धर्मिता से की जाती है उसका भविष्य उज्जवल है | जिसमें जन कल्याण लोकहित नहीं है, उस साहित्य का समाज में मूल्य कौड़ी के बराबर नहीं होता है | 

 

पत्रकारिता लोकहित में किया गया सेवा मूलक कार्य है, समाज हित का भाव ही सेवा के लिए प्रेरित करता है | पत्रकारिता दैनिक इतिहास है इसलिए से बड़ी सावधानी से परोसा जाना चाहिए | यह समाज का आईना है, इसे हमेशा साफ सुथरा रखना उचित है | यह समाज की दशा और दिशा तय करने में अहम भूमिका ही नहीं निभाती, लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी माना जाता है।

 

 इस धरती पर सब कुछ सापेक्ष है देश काल पात्र से प्रभावित है देशकाल पात्र के अनुसार घटनाओं को कल्याण धर्मी बनाकर प्रस्तुत करना पत्रकारिता का प्राण धर्म है। यदि ऐसा नहीं है तो यह मात्र सूचनाओं के आदान-प्रदान तक ही सीमित होकर रह जाएगी | पत्रकारिता का प्राण धर्म भी खंडित हो जाएगा | यह जगत सापेक्ष है निरपेक्ष कुछ भी नहीं है शुभ और अशुभ का संघर्ष बाहर और भीतर हमेशा चलता रहता है इसलिए जगत मे निष्पक्षता की बात करना उचित प्रतीत नहीं होता है | परंतु एक बात तो संभव है की घटनाओं को देशकाल पात्र के अनुसार कल्याण मूलक बनाकर प्रस्तुत किया जा सकता है, यही निष्पक्ष और मूल्य निष्ठ पत्रकारिता होगी |

 इसको वही व्यक्ति कर सकता है जिसके अंतर मन में बृहत भाव समग्र बुद्धि का संचार हो रहा है नीति प्रज्ञ, कर्तव्यनिष्ठ है और विवेकशील व्यक्ति के द्वारा ही मूल्य निष्ठ पत्रकारिता संभव है | जिस व्यक्ति के अंदर मनुष्यत्व नहीं है, मानव धर्म में प्रतिष्ठित नहीं है, उसके द्वारा निष्पक्षता और मूल्यनिष्ठता की बात सोचना बेमानी होगा |

 

 पत्रकारिता एक विशेष प्रकार का तकनीकी प्रधान कार्य है,इस गुरूत्वपूर्ण कार्य की जिम्मेदारी देते समय उस व्यक्ति के व्यक्तित्व, बौद्धिक क्षमता विवेकशीलता की परख करना आवश्यक है | क्योंकि पत्रकारिता कि समाज की दशा और दिशा तय करने में अहम भूमिका होती है. सूचनाओं का प्रकटीकरण बड़े ही सावधानी से करना चाहिए. यह दैनिक इतिहास है कहा गया है कि इति हसति इत्यर्थे इतिहास :

 

 विभिन्न काल खण्डो मे समय-समय पर समाज में किसी न किसी दर्शन का प्रभाव रहा है। परिणाम स्वरूप उस दर्शन के अनुकूल समाज की सभी व्यवस्थाएं यथा सामाजिक आर्थिक राजनीतिक शैक्षिक संचालित होती हैं. लोगों का रहन-सहन खान-पान और सोच उसी के अनुकूल हो जाता है | इतिहास इस बात का साक्षी है। भारत भूमि पर बौद्ध, जैन शंकराचार्य के पौराणिक दर्शन का प्रभाव स्पष्ट रूप से पड़ा है। आज संपूर्ण समाज के ऊपर दक्षिणपंथी और वामपंथी दर्शन का प्रभाव दिखाई देता है, पूंजीवादी दर्शन के प्रभाव से समाज में अधिक से अधिक धन जमा करना लोगों का एकमात्र उदेश्य हो गया है लाभ कमाना उनकी नियति बन गई है लाभ कमाने की होड में सभी मानवीय मूल्य पीछे छुटते चले  जा रहे हैं । भाव जडता (अंध विस्वाशो ) को जिस तेजी से महिमा मंडित किया जा रहा है यह अप्रत्याशित और अचंभित करने वाला है | धनार्जन की होड में व्यवसायीक करण का परिवेश तेजी से बढ़ रहा है जहां व्यवसायीकरण होगा सेवा भाव नहीं रहता है हर क्रियाकलाप को लाभ की दृष्टि से देखा जाता है। लाभ और मोह प्रवृत्तियों का प्रभाव तेजी से बढ रहा है। स्वर्ग का मोह और नरक का भय दिखाने के लिए समाज का एक वर्ग तरह-तरह की कहानी गढने में लगा हुआ है। इससे समाज में गलत अवधारणाएं पनप भी रही हैं और प्रतिष्ठित भी हो रही है।

 भारतवर्ष  में पत्रकारिता भी पूंजीवादी व्यवस्था का शिकार हो रही है यह व्यवसाय की तरफ बढ़ रहा है सेवा मूलक मूल्य निष्ठ पत्रकारितापर ग्रहण लग गया है।

 

 पत्रकारिता जगत में पत्रकारिता का व्यवसायीकरण सबसे बड़ी चुनौती उभर कर आई है। इसका परिणाम स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है पत्रकारिता सेवा मुलक कल्याण धर्मी न होकर धनार्जन मूलक होकर रह गयी  है।

पत्रकारिता पर सरकार,पूँजीपतियो,राजनैतिक दलो का बढता दबाव दूसरी सबसे बडी चुनौती है।

 

 

 मीडिया तंत्र के माध्यम से जो हम श्रोताओ और पाठको को परोसते है, वही पढता सुनता और देखता हैं | धन कमाने के लिए हम कुछ भी परोसते रहते हैं जिससे समाज में अप संस्कृति को बढ़ावा मिल रहा है समाज का एक बहुत बड़ा तपका इस कुसंस्कृति का शिकार होकर, दिशा बिहीन होकर इधर-उधर भटक रहा है देश की प्रतिभाएं कुंठित हो रही है। इससे समाज को बचाना बहुत बड़ी चुनौती है।

 

 

 पत्रकारिता की पूंजी है सत्य को उजागर करना तथा जनता में विश्वास, फेक न्यूज़ के कारण पत्रकारिता की विश्वसनीयता कठ घरे में खड़ी हो गई है, जनता का मीडिया के प्रति विश्वास कमता जा रहा है, यह एक बहुत बड़ी चुनौती है। पत्रकारिता जनता की आवाज होती है परंतु जब आवाज ही कराह रही हो तो कौन खड़ा होगा समाज और सरकार को आईना दिखाने के लिए। आज देखा जा रहा है कि पत्रकारिता का लोक हित से सरोकार कम किसी विशेष वर्ग और सरकार को महिमा मंडित करने में लगी हुई है। कम से कम खर्चा करके अधिक से अधिक लाभ कमाने की होड मे पत्रकारों का हाल बुरा होता जा रहा है।

 

पत्रकारिता में लगे हुए लोग जब अपनी न्यूनतम आवश्यकताओ को पूरा करने में अक्षम हो तो सोचा जा सकता है कि वे किस प्रकार की पत्रकारिता करेंगे सच ही कहा गया है भूखे भजन न होहिं गोपाला, यह सबसे बड़ी चुनौती है। इसके अलावा नैतिक शिक्षा का अभाव, पत्रकारिता शिक्षा का अभाव, मध्य और लघु वर्गीय समाचार पत्रों का अस्तित्व खतरे में आ जाना, समाचार लिखने और दिखाने की स्वतंत्रता ना होना ‌, निष्पक्ष पत्रकारिता करने वाले लोगों का तेजी से पलायन  होना, गोदी मीडिया का बोलबाला, बेरोजगारी का लाभ उठाकर अक्षम और अकुशल नौजवानों को पत्रकारिता का उत्तरदायित्व सौपना, ये बहुत बड़ी चुनौतियां हैं। इस पर विशेष रूप से ध्यान देने की जरूरत है नहीं तो पत्रकारिता अपने मूल स्वरूप से भटक कर दम तोड़ देगी।

 

 कुछ भी हो हम यह नहीं कह सकते कि पत्रकारिता अपनी पटरी से शतप्रतिशत उतर गई है। आज भी कुछ लोग हैं जो पत्रकारिता को अपने जीवन का परम और चरम पथ बनाकर  पत्रकारिता की पवित्रता को कायम रखने के लिए सतत संघर्ष शील है,उनके लिए स्व० अटल बिहारी बाजपाई  जी की पक्तिया प्रासंगिक लगती है, हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूगा,

 काल के कपाल पर, लिखता और मिटाता हूँ। ऐसे कर्मनिष्ठ, आदर्श निष्ठ पत्रकार बंधुओ को मैं साधुवाद देता हूं।

 

 यह भी सत्य है कि पत्रकारिता मरेगी नहीं कुछ समय के लिए धूमिल हो सकती है वह समय आएगा जब समाज के विप्लवी खड़ा होंगे और पत्रकारिता को उसके मूल स्वरूप में स्थापित कर देगे | इसका मतलब यह नहीं है कि हम इनके प्रत्याशा में हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहे हमको भी इस चुनौती को स्वीकार करते हुए अवसर में बदलने का भरपूर प्रयास करना उचित होगा ।

 

 

 प्रश्न यह उठता है कि इन चुनौतियो का समाधान क्या है ? इस संबंध में मैं कहूंगा आज पत्रकारिता दो खेमो मे बँटी हुई है, वमपंथी और दक्षिण पंथी।दोनों का प्राण धर्म है धन कमाना और संचित करना, ऐसी विचार धाराओ मे सर्वजन हिताय, सर्व जन सुखाय का संबंध दूर दूर तक नहीं है। इसलिए व्यवस्था परिवर्तन की राह तलाशनी होंगी। यह है नव्यमानवता वादी व्यवस्था |  जो व्यवस्था सर्व कल्याण धर्मी है, उसे ही नव्य मानवता वादी व्यवस्था कहा जाता है |

 

          

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