नेपाली जेन- Z आंदोलन के सबक विश्व नेतृत्व के लिए
लेखक -: प्रोफेसर रवि प्रताप सिंह,
प्राउटिस्ट यूनिवर्सल
नेपाल में जेन-z आंदोलन क्रान्तिकारी परिवर्तन का आह्वान है या दिशाहीन अराजकता? कोई भी क्रान्ति सिर्फ सशस्त्र प्रतिक्रिया स्वरूप हिंसा और तोड़ फोड़ के द्वारा सत्ता तो बदल सकती है किंतु व्यवस्था में बेहतरी सुनिश्चित करने के लिए एक संतुलित दिशा-निर्देशों से युक्त समाजार्थिक परिवर्तन योजना सामने लानी होती है। इसी परिवर्तन योजना को विचारधारा की संज्ञा दी है। यह आवश्यक होता है, ताकि क्रान्ति गलत दिशा व हाथों में भटके नहीं। इसके अभाव में क्रांति आगे चलकर अराजकता व शोषण की पुनरावृत्ति ही प्रमाणित होती है।
जेन-z आंदोलन में तोड़-फोड़ व हिंसा तो खूब हुई किन्तु किसी सन्तुलित विचारधारा व स्पष्ट नेतृत्व का सामने न आना चिन्ताजनक है। इसमें भ्रष्टाचार, गरीबी, बेकारी, समाजार्थिक असमानता, पिछले १७ वर्षों से व्याप्त राजनीतिक अस्थिरता व राजनीतिक दलों का अत्यधिक बिखराव, दिशाहीन लोकतंत्र व नेतृत्व, नेपोकिड्स की विलासिता और राजतंत्र को भी मात देता भाई भतीजावाद ऐसे मुद्दे थे जिनके प्रति इतनी विनाशकारी प्रतिक्रिया होनी थी। इतनी जल्दी हो गई इतने कम समय में यह अप्रत्याशित था। जो कुछ हुआ यह माना जा सकता है कि इसने नेपाल को 20 साल पीछे धकेल दिया। पर्यटन उद्योग को गहरा आघात पहुंचना तय है। सकल घरेलू उत्पाद में 6.7% के योगदान के साथ पर्यटन नेपाली अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, जो विदेशी मुद्रा का प्राथमिक स्रोत, सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि का चालक तथा आतिथ्य और परिवहन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में एक प्रमुख नियोक्ता के रूप में कार्य करता है ।
अब जो स्थिति है उस पर नजर डालें। जेन-z आंदोलकारियों, जेल से भागे हुए कैदियों तथा अपराधियों में अंतर करना आसान नहीं है। अराजक तत्वों का समूह बना हुआ है जिसमें तीन स्पष्ट धड़े हैं एक सुशीला कार्की के समर्थक, दूसरा तथाकथित भारत विरोधी धड़ा और तीसरा हामी नेपाल के कार्यकर्ता। अनेक लोग मान रहे हैं कि 10 से अधिक गुट इसमें विद्यमान है।
वास्तव में आज नेपाल कल तक बांग्लादेश, श्रीलंका, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बलूचिस्तान और अपने देश के भीतर ही देखे तो कभी कश्मीर तो कभी मणिपुर कभी- कभी कोई और क्षेत्र कतिपय संगतियों व संकीर्णताओं के चलते सुलगने लगता है और यही सुलगती चिनगारी मौका पाकर विस्फोटक रूप धारण कर लेती है। संतुलित सोच का अभाव है। नेपाल समेत पूरी दुनिया कभी साम्यवाद तो कभी पूंजीवाद कभी रूस, चीन और उत्तरी कोरिया तो कभी अमेरिका, यूरोपीय यूनियन या नाटो के प्रभाव में झूलती रहती है। अपना देश भारत भी अछूता नहीं है।
एक रूपांतरकारी संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता-- प्राउट
किसी भी समाज को सुचारू ढंग से चलने के लिए संकीर्णताओं की बेड़ियों से मुक्त होने की आवश्यकता होती है। 18 से 30 वर्ष के युवा वर्ग इन बेड़ियों से मुक्त होने के लिए सर्वाधिक सक्षम होते हैं। इस वर्ग के अंदर ही क्षमता है कि वह स्वयं को और पूरे समाज को जाति, नस्ल, संप्रदाय, परिवारवाद, भाषाई व क्षेत्रीय वर्चस्व और राष्ट्रवादी संकीर्णताओं से बाहर निकाल सके। श्री प्रभात रंजन सरकार द्वारा प्रतिपादित प्रगतिशील उपयोग तत्व (प्राउट) ही दुनिया में एकमात्र संतुलित विचारधारा है जो अपने आप में पूर्ण तथा व्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए मुक्ति मार्ग प्रशस्त करता है। प्रउत की नीति निम्न बातों पर बल देती है:
1- समाज के प्रत्येक व्यक्ति के लिए भोजन वस्त्र आवास शिक्षा व चिकित्सा की पांच न्यूनतम आवश्यकताओं की एक उपयुक्त स्तर पर उपलब्धता सुनिश्चित करना।
2- शेष उपलब्ध संसाधनों को गुण व योग्यता के अनुपात में निरंतर वृद्धिशील वितरण सुनिश्चित करना।
3- प्रत्येक क्षेत्र का संतुलित विकास सुनिश्चित करना तथा उस क्षेत्र में उपलब्ध संसाधनों का प्रधानत: सहकारी समितियों के माध्यम से यथासंभव तैयार माल के रूप में दूसरे क्षेत्रों को निर्यात सुनिश्चित करना।
4- क्षेत्र में उपलब्ध भौतिक व मानसिक (जिसमें भाषा व संस्कृति भी शामिल है) संसाधनों के समुचित विकास सभी को रोजगार पर बल।विविधता के साथ प्रगति सुनिश्चित करने हेतु सोशियो इकोनामिक जोन/समाज के रूप में विकास की व्यापक अवधारणा। भोजपुरी समाज, ब्रज समाज, मगही समाज आदि के रूप में भारत में 44 समाजों तथा पूरी दुनिया में 256 समाजों के रूप में विकास पर बल ताकि कोई क्षेत्र अपेक्षित ना छूटे।
5- पूंजीवाद, समाजवाद व साम्यवाद की अतिवादी दृष्टियों से भिन्न सभी को साथ लेकर चलने की प्रगतिशील सामुदायिक दृष्टि।
6- सक्रिय नैतिक वादियों के नेतृत्व में केंद्रीय कृत अनुशासन युक्त राज्य व्यवस्था तथा विकेंद्रित समाज आर्थिक व्यवस्था की नीति। यह सक्रिय नैतिक वादी अथवा सद्विप्र (active moralists) स्वयं प्रत्यक्ष शासन नहीं करेंगे किंतु शासन व्यवस्था के प्रत्येक क्षेत्र के लिए दबाव समूह का कार्य करेंगे।
7- वैश्विक भ्रातृत्व, सहअस्तित्व, विश्व सरकार तथा भागवत धर्म पर बल। इन सात तत्वों को लेकर व्यवस्था चलेगी तो वह विषमता, शोषण व असंतोष से ऊपर उठकर सही मायने में प्रगति कर सकेगी। यह बातें केवल नेपाल ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए स्पष्ट दृष्टि व रणनीतिक पथ प्रदर्शन हैं।