गोरखपुर: मवेशियों में लम्पी का कहर, टीकाकरण के बाद भी पशुपालक परेशान
वर्तमान में करीब डेढ़ सौ मामले, विभाग की कड़ी निगरानी
कृपा शंकर चौधरी
गोरखपुर। ग्रामीण इलाकों में मवेशियों में लम्पी स्किन डिज़ीज़ (LSD) का खतरा अब भी बना हुआ है। पशुपालक दूध उत्पादन में गिरावट और इलाज के बढ़ते खर्च से चिंतित हैं।
मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. धर्मेंद्र पांडे ने बताया कि जिले में लम्पी के करीब डेढ़ सौ सक्रिय मामले हैं। पहले हालात गंभीर थे, लेकिन अब बीमारी पर काफी हद तक नियंत्रण पाया जा चुका है। उन्होंने कहा कि यह बीमारी विशेष रूप से उन मवेशियों में फैल रही है जो चरने के लिए बाहर जाते हैं। उन्होंने सभी पशुपालकों से अपील की कि वे अपने जानवरों को अनिवार्य रूप से टीका लगवाएं और विभागीय अभियान में सहयोग करें।
लक्षण और प्रसार
लम्पी से संक्रमित मवेशियों में तेज बुखार, शरीर पर कठोर गांठें, आंखों और नाक से स्राव, पैरों में सूजन, दूध उत्पादन में कमी, कमजोरी और मुंह में छाले जैसे लक्षण दिखाई दे रहे हैं। यह बीमारी मच्छरों, मक्खियों और अन्य कीटों के काटने से तेजी से फैल रही है।
टीके के बावजूद क्यों फैल रही बीमारी?
विशेषज्ञों के मुताबिक टीका लगने के बाद जानवरों में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने में 3–4 सप्ताह का समय लगता है। कई मवेशी पहले से संक्रमित होते हैं और बाद में बीमारी के लक्षण सामने आते हैं। इसलिए केवल टीका ही नहीं, बल्कि साफ-सफाई, कीट नियंत्रण और संक्रमित पशुओं को अलग रखना भी जरूरी है।
पशुपालकों की परेशानी
बीमारी के कारण ग्रामीण पशुपालकों को स्थानीय दवाओं से राहत नहीं मिलने पर बाहर से महंगी दवाएं मंगवानी पड़ रही हैं। इस पर उन्हें हजारों रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। वहीं दूध उत्पादन घटने से उनकी आर्थिक स्थिति पर और दबाव बढ़ गया है।