भगवान श्रीकृष्ण ने सुदामा को चावल के बदले दी थी 2 लोक की संपत्ति।
रिपोर्ट --विनोद कुमार सोनबरसा बजार एवं जगदीशपुर गोरखपुर।
गोरखपुर/एम्स क्षेत्र के अराजी बसडीला गांव में श्री लवकुश महराज कर रहे है।श्रीमद्भागवत महापुराण कथा के आठवे दिन शनिवार को कथा वाचक पूज्य लवकुश जी महाराज ने सुदामा चरित्र के कथा को सुनाते हुए उन्होंने कहा कि बचपन के मित्र रहे कृष्ण और सुदामा एक बार तेज भूख लगने पर सुदामा ने अपने हिस्से के साथ ही साथ भगवान श्रीकृष्ण के हिस्से के भी चने खा लिए बाद में इस कारण सुदामा जी को जीवन भर दरिद्रता का सामना करना पड़ा |
मित्रता में गरीबी और अमीरी नहीं देखनी चाहिए। मित्र एक दूसरे का पूरक होता है। भगवान कृष्ण ने अपने बचपन के मित्र सुदामा की गरीबी को देखकर गरीबी दुर करने का बिचार करते हुए अपने राजधानी द्वारिका में आये हुए अपने मित्र को अपने सिंहासन पर बैठाया और उन्हें उलाहना दिया कि जब गरीबी में रह रहे थे तो अपने मित्र के पास तो आ सकते थे। लेकिन सुदामा जी मित्रता को सर्वोपरि मानते हुए कुछनही कहा।लेकिन भगवान ने अपने मित्र के लिए दो लोकों का दरबाजा खोल दिया।कथा का सार समाज का एक भी व्यक्ति अगर अच्छा जगह पर पहुचेगा तो अन्य लोगों को भी आगे बढाएगा। सच्चे प्रेम में ऊँच या नीच नहीं देखी जाती और न ही अमीरी गरीबी देखी जाती है। मुख्य यजमान श्री स्वर्गीय देवशरण सिंह जी की पत्नी मालती देवी,दीनदयाल सिंह,ग्राम प्रधान श्री सुरेन्द्र मोहन,पुर्व प्रधान एवम जिला पंचायत प्रत्याशी सुनील जी,पंकजसिंह,रणधीर सिंह, सूरज सिंह,आकाश सिंह पूनम देवी,रामगोपाल यादव,सहित
सैकड़ों श्रोताओ ने कथा का रसपान किया ।