अरावली की नई परिभाषा पर प्राउटिस्ट सर्व समाज का विरोध, राष्ट्रपति से की न्यायिक व वैज्ञानिक समीक्षा की मांग
ब्यूरो
अरावली पर्वतमाला को लेकर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हाल ही में तय की गई 100 मीटर ऊँचाई की नई परिभाषा को प्राउटिस्ट सर्व समाज ने देश के भविष्य के लिए घातक बताते हुए कड़ा विरोध दर्ज कराया है। संगठन का कहना है कि यह निर्णय जमीनी और पारिस्थितिक वास्तविकताओं से परे है तथा यदि इसकी समीक्षा नहीं की गई, तो अरावली का अस्तित्व ही संकट में पड़ जाएगा।
इसी मुद्दे को लेकर प्राउटिस्ट सर्व समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष आचार्य दिलीप सिंह सागर ने महामहिम राष्ट्रपति को एक औपचारिक पत्र भेजकर सर्वोच्च न्यायालय के 20 नवंबर 2025 के निर्णय की तत्काल न्यायिक और वैज्ञानिक समीक्षा की मांग की है। इसी क्रम में राष्ट्रीय प्रवक्ता करण सिंह राजपुरोहित द्वारा एक प्रेस वक्तव्य जारी कर इस विषय पर सार्वजनिक आह्वान किया गया।
प्रवक्ता ने बताया कि अरावली की लगभग 90 प्रतिशत पहाड़ियाँ 100 मीटर से कम ऊँचाई की हैं। ऐसे में नई परिभाषा के लागू होने से कानून की आड़ में बड़े पैमाने पर खनन और अतिक्रमण को वैधता मिल जाएगी, जिससे अरावली पूरी तरह समाप्त होने की कगार पर पहुंच सकती है। उन्होंने कहा कि अरावली का महत्व उसकी ऊँचाई में नहीं, बल्कि उसकी पारिस्थितिक निरंतरता में है। छोटी-छोटी पहाड़ियाँ ही मरुस्थल को रोकने में अहम भूमिका निभाती हैं और यदि इन्हें नजरअंदाज किया गया तो रेगिस्तान के विस्तार को रोकना असंभव हो जाएगा।
प्रेस वक्तव्य में इसे संविधान के अनुच्छेद 48A की भावना के विपरीत बताते हुए कहा गया कि राज्य का दायित्व पर्यावरण संरक्षण है, जबकि वर्तमान निर्णय इस दायित्व को कमजोर करता है। इसके साथ ही संगठन ने यह भी आरोप लगाया कि फैसले में अरावली पर निर्भर आदिवासियों, किसानों और स्थानीय समुदायों के आर्थिक अधिकारों और पुनर्वास की अनदेखी की गई है। प्राउटिस्ट सर्व समाज का स्पष्ट मत है कि प्राकृतिक संसाधनों पर पहला अधिकार स्थानीय लोगों का होना चाहिए, न कि बाहरी खनन माफियाओं का।
संगठन ने मांग की है कि केंद्र सरकार सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध तत्काल रिव्यू पिटीशन दाखिल करे तथा अरावली की परिभाषा तय करने वाली किसी भी समिति में पर्यावरणविदों के साथ स्थानीय सामाजिक संगठनों और प्राउटिस्ट विचारकों को भी शामिल किया जाए।
प्राउटिस्ट सर्व समाज ने चेतावनी दी है कि जब तक अरावली को पूर्ण सुरक्षा देने के लिए इस निर्णय की समीक्षा नहीं की जाती, तब तक संगठन चुप नहीं बैठेगा। आचार्य दिलीप सिंह सागर के नेतृत्व में यह आंदोलन सड़क से लेकर संवैधानिक संस्थाओं तक जारी रहेगा।